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छठ पूजा 2024: क्यों है यह पर्व इतना खास? जाने तारीख, समय और महत्व

छठ पूजा का पर्व सूर्य देवता और छठी मइया की उपासना का अनुपम अवसर है, जो न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्द हो चुका है। 2024 में यह पावन पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाएगा। इस वर्ष छठ पूजा का महापर्व 6 नवंबर से 9 नवंबर तक चलेगा, जिसमें प्रमुख अनुष्ठान 8 नवंबर को होंगे।

छठ पूजा 2024: तिथि और समय

महत्वपूर्ण तिथियां:

  • नहाय-खाय: 6 नवंबर 2024

  • खरना: 7 नवंबर 2024

  • संध्या अर्घ्य: 8 नवंबर 2024

  • प्रातः अर्घ्य और पारण: 9 नवंबर 2024

महत्वपूर्ण समय:
8 नवंबर की संध्या को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, और 9 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण होगा।

छठ पूजा क्यों मनाई जाती है?

छठ पूजा सूर्य उपासना का एक अद्भुत पर्व है, जिसमें व्रतधारी (व्रत रखने वाले) अपनी संपूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ सूर्य देवता और छठी मइया की पूजा करते हैं। यह पर्व प्रकृति और मानव जीवन के बीच के संतुलन को बनाए रखने का प्रतीक है। छठ पूजा की एक खासियत यह है कि यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है और अब इसे बिहार की संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है। इस पर्व में सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है ताकि जीवन में सुख, शांति, और स्वास्थ्य की प्राप्ति हो।

इस पर्व का उद्देश्य न केवल जीवनदायिनी शक्तियों का आभार प्रकट करना है बल्कि सभी जीवों के प्रति करुणा और सह-अस्तित्व का भाव भी जगाना है। छठ पर्व के दौरान सूर्य और छठी मइया को अर्घ्य देकर व्रतधारी अपने और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह पर्व ऊर्जा और सकारात्मकता से भरे जीवन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य और जल की आराधना होती है। इस पर्व में सूर्य को जल, वायु, और पृथ्वी की ऊर्जा के स्रोत के रूप में देखा जाता है, जो जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक होते हैं। छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता और छठी मइया को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद से रोग, दुख, और संकटों से मुक्ति पाना है।

इस पर्व में न केवल शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है, बल्कि यह पर्व जीवन में अनुशासन, आत्मनियंत्रण, और सहिष्णुता का संदेश भी देता है। यह पर्व हमें जीवन में संतुलन और संयम के महत्व को सिखाता है, जो आज के जीवन में अनिवार्य है। इसके अलावा, छठ पूजा का अनुष्ठान स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभदायक है, क्योंकि इसमें उपवास और नदी किनारे समय बिताने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है।

छठ पर्व का लाभ

छठ पूजा के दौरान किए गए अनुष्ठानों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी कई लाभ होते हैं:

  1. स्वास्थ्य में सुधार: व्रत के दौरान पानी और प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का सेवन होने से शरीर की शुद्धि होती है और स्वास्थ्य बेहतर होता है। चार दिनों के उपवास से शरीर में टॉक्सिन्स कम होते हैं और पाचन तंत्र मजबूत होता है।

  2. मानसिक शांति: छठ पर्व का सारा अनुष्ठान मानसिक शांति और आत्मनियंत्रण पर केंद्रित है, जो तनाव कम करने में सहायक होता है। इस पर्व का नियमित पालन करने वाले लोग मानसिक शांति और ऊर्जा में वृद्धि महसूस करते हैं।

  3. आध्यात्मिक संतुलन: सूर्य उपासना से आत्मा और मन में सकारात्मकता का संचार होता है और जीवन के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मकता आती है।

  4. पारिवारिक एकता: छठ पूजा सामूहिक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है, जिसमें पूरा परिवार मिलकर अनुष्ठान करता है। इससे पारिवारिक एकता और सहयोग का भाव बढ़ता है, जिससे रिश्तों में मधुरता आती है।

  5. पर्यावरण संरक्षण: यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने की प्रेरणा देता है। नदी, जल, और सूर्य की पूजा से पर्यावरण संरक्षण का महत्व भी समझ में आता है, जो आज की जरूरत है।

छठ पूजा के अनुष्ठान और विधियाँ

नहाय-खाय:

पहले दिन को नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रतधारी नदी या तालाब में स्नान कर पवित्र भोजन करते हैं, जिसमें कद्दू-भात का विशेष महत्व होता है।

खरना:

दूसरे दिन खरना के दिन उपवास रखा जाता है और शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

संध्या अर्घ्य:

तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है। व्रतधारी डूबते सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देते हैं और सूर्य की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं।

प्रातः अर्घ्य और पारण:

चौथे और अंतिम दिन, उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इस प्रकार व्रत का समापन किया जाता है। यह दिन सूर्य को धन्यवाद देने का अवसर है और इस दिन का विशेष महत्व माना गया है।

छठ पूजा की संस्कृति और परंपरा

छठ पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व खासकर मैथिल, मगही और भोजपुरी लोगों की संस्कृति का प्रतीक है। मिथिला क्षेत्र की महिलाएं बिना सिलाई के शुद्ध सूती धोती पहनती हैं, जो उनकी पारंपरिक संस्कृति को दर्शाती है।

छठ पूजा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि यह लोगों को प्रकृति के साथ जोड़ने का एक माध्यम भी है। आज जब प्रवासी भारतीयों के माध्यम से यह पर्व विश्वभर में प्रसिद्ध हो चुका है, तब भी इसका मूल स्वरूप और महत्व बरकरार है।

छठ पूजा की प्रासंगिकता और प्रेरणा

आज जब पर्यावरण, स्वास्थ्य, और मानसिक शांति जैसे मुद्दों पर वैश्विक ध्यान बढ़ रहा है, तब छठ पूजा का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। छठ पर्व हमें सिखाता है कि मानव जीवन का आधार प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना और संतुलन बनाए रखना है। इस पर्व के माध्यम से हम जल, वायु, और सूर्य जैसे जीवनदायी तत्वों का सम्मान करना सीखते हैं और उनके प्रति अपना कर्तव्य निभाते हैं।

अंत में

छठ पूजा 2024 का पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि यह जीवन में अनुशासन, मानसिक शांति, और पर्यावरण संरक्षण की भावना को बल देता है। इस पर्व का हर अनुष्ठान, हर परंपरा हमें एक बेहतर इंसान बनने और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने की प्रेरणा देती है।