मांगे हिसाब: आखिर कहां है हमारी स्मार्ट सिटी?
स्मार्ट सिटी मिशन के तहत शहर को आधुनिक और स्मार्ट सुविधाओं से लैस करने के लिए सरकार ने करीब 1000 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया था। लेकिन नौ साल बाद भी ग्वालियर में स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं का अभाव नजर आ रहा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर मिले इस बजट में से 274 करोड़ रुपए उन कार्यों में खर्च कर दिए गए, जो इस मिशन का हिस्सा ही नहीं थे।
कहां गई स्मार्ट सिटी की रकम?
स्मार्ट सिटी कंपनी द्वारा अब तक 941 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन शहर की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नजर नहीं आता। सड़कों की हालत जस की तस बनी हुई है, ट्रैफिक जाम की समस्या बरकरार है, सार्वजनिक परिवहन में सुधार नहीं हुआ और न ही कोई बड़ा स्मार्ट प्रोजेक्ट धरातल पर उतरा है।
क्या कहते हैं शहरवासी?
ग्वालियर के नागरिकों में इस स्थिति को लेकर भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद शहर में सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। न तो स्मार्ट रोड बन सकी, न ही डिजिटल सेवाओं का विस्तार हुआ, और न ही कोई अत्याधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया।
अधिकारियों के दावे और हकीकत
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारियों का दावा है कि कई योजनाओं पर काम हुआ है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। कई प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं, जबकि कुछ पूरी तरह से शुरू भी नहीं हो सके।
जांच की मांग
शहरवासियों और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने स्मार्ट सिटी के फंड के उपयोग की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि जब 1000 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, तो ग्वालियर को स्मार्ट सिटी के रूप में क्यों नहीं देखा जा सकता?
अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले पर क्या कदम उठाता है और क्या ग्वालियर को वास्तव में स्मार्ट सिटी बनाने की दिशा में कोई ठोस कार्य किया जाएगा या यह योजना केवल कागजों पर ही सिमटकर रह जाएगी।