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किसानों को सीमांकन में दिक्कत, अस्तित्व के लिए जूझ रहा प्रदेश का सबसे बड़ा राजस्व न्यायालय

ग्वालियर: मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा राजस्व न्यायालय, जो किसानों की भूमि से जुड़े विवादों और सीमांकन मामलों के निपटारे के लिए अहम भूमिका निभाता है, अब खुद अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। प्रशासनिक उपेक्षा, लंबित मामलों की भरमार और संसाधनों की कमी के कारण न्यायालय की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है, जिससे किसानों को न्याय पाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

सीमांकन की प्रक्रिया बनी किसानों के लिए मुसीबत

प्रदेश में हजारों किसान सीमांकन की प्रक्रिया पूरी न होने के कारण अपनी जमीन पर अधिकार प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। राजस्व न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे किसानों को सालों तक इंतजार करना पड़ रहा है।

प्रशासनिक लापरवाही और स्टाफ की कमी

  • सीमांकन और भूमि विवादों को लेकर दर्ज मामलों की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन उन्हें सुलझाने के लिए पर्याप्त स्टाफ और संसाधन नहीं हैं
  • न्यायालय में डिजिटल रिकॉर्ड और ऑनलाइन प्रक्रिया का अभाव है, जिससे किसानों को बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
  • कई मामलों में अधिकारियों की मनमानी और धीमी कार्यवाही किसानों की परेशानी को और बढ़ा रही है।

किसानों की मांग जल्दी हो मामलों का निपटारा

किसानों का कहना है कि राजस्व न्यायालय की कार्यप्रणाली में सुधार लाकर मामलों का निपटारा तेज किया जाए। इसके लिए जरूरी है कि सीमांकन की प्रक्रिया को डिजिटलीकरण किया जाए और कोर्ट में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाए

सरकार को जल्द उठाने होंगे कदम

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार ने जल्द ध्यान नहीं दिया, तो प्रदेश का सबसे बड़ा राजस्व न्यायालय पूरी तरह अधिकारहीन और निष्क्रिय हो सकता है। किसानों को राहत देने के लिए नई टेक्नोलॉजी, अतिरिक्त स्टाफ और पारदर्शिता की जरूरत है।