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यमन में भारतीय नर्स को मौत की सजा: क्या भारत सरकार बचा पाएगी निमिषा प्रिया की जान?

यमन में कैद भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को मौत की सजा का सामना करना पड़ रहा है। 30 दिसंबर 2024 को यमन के राष्ट्रपति रशद अल-अलीमी ने उनकी सजा पर अंतिम मुहर लगा दी। निमिषा, जो केरल की रहने वाली हैं, पर यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या का आरोप है। यह मामला अब अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया है, और भारत सरकार पर उनकी सजा रुकवाने के लिए दबाव बढ़ रहा है।

क्या है पूरा मामला?

निमिषा प्रिया, जो यमन में एक नर्स के रूप में काम कर रही थीं, पर 2017 में तलाल अब्दो महदी की हत्या का आरोप लगा। निमिषा का दावा है कि उन्होंने आत्मरक्षा में यह कदम उठाया, क्योंकि तलाल ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें परेशान किया।

यमन की अदालत ने इस दावे को खारिज कर दिया और उन्हें 2020 में मौत की सजा सुनाई गई। इस सजा को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद अब इसे जल्द ही लागू किया जा सकता है।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया

भारत सरकार और विदेश मंत्रालय ने इस मामले में यमन सरकार के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकार ने यमन से अपील की है कि निमिषा प्रिया को राहत दी जाए और मामले की दोबारा समीक्षा की जाए।

राजनीतिक और सामाजिक अपीलें
निमिषा के परिवार और केरल के कई सामाजिक संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से हस्तक्षेप की अपील की है। देशभर में इस सजा के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है।

क्या है विकल्प?

निमिषा प्रिया को बचाने के लिए भारतीय सरकार के पास सीमित विकल्प हैं। यमन के राष्ट्रपति से सीधे अपील, कानूनी पुनर्विचार, या तलाल के परिवार के साथ 'ब्लड मनी' (क्षतिपूर्ति) पर समझौता संभव विकल्प हैं।

ब्लड मनी पर उम्मीदें

यमन के कानून के तहत, हत्या के मामलों में 'ब्लड मनी' का विकल्प उपलब्ध है, जिसमें आरोपी पीड़ित के परिवार को मुआवजा देकर अपनी सजा माफ करवा सकता है। निमिषा का परिवार और सामाजिक कार्यकर्ता इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं।

मामले पर विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला केवल कानूनी नहीं बल्कि राजनयिक जटिलताओं से भी जुड़ा है। यमन में चल रहे गृहयुद्ध और राजनीतिक अस्थिरता के कारण वहां की न्याय प्रक्रिया प्रभावित होती है, जिससे यह मामला और संवेदनशील बन गया है।

आगे की राह

निमिषा प्रिया का मामला भारत के लिए एक चुनौतीपूर्ण राजनयिक परीक्षण बन चुका है। यह देखना होगा कि क्या सरकार इस सजा को रोकने में कामयाब हो पाती है या नहीं।

यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी सहायता को लेकर बड़े सवाल खड़े करती है,